मेरी उम्मीदें
उनके टूटे चप्पलों जैसी
मेरे सपने
थक-कर चूर
मरियल से चेहरे लिए
झुग्गियों में सोते हुए
दीखते हैं
फटी चादर से बने दरवाजे पर
मूतते हुए कुत्ते
कुछ नहीं जानते
जो इन्हें बदल सकता है
उसके दिमाग में
जब ये बातें उड़ेली जाती हैं
तब वे
वातानुकूलित शौचालय में
मूत कर चले आते हैं
ये भी कुत्ते हैं
और सब जानते है
यदि न जानते , तो
फटी चादर से बने
दरवाजे पर .................................................
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