क्या मै झूंठा हूँ माँ
जब मै कहता हूँ की
आज मालिक ने
हम सबको खाना खिलाया
भले ही मैने पिछले तीन दिनों से
कुछ भी नहीं खाया
ठेकेदार बाबु ने
पूरे रुपये दे दिए हैं
भले ही मैंने अभी तक
एक पैसा भी नहीं पाया
क्या मै झूंठा हूँ माँ
जब मै कहता हूँ की
मै तुम्हारी आँखों का मोतिया
ठीक करा दूंगा
तुम्हारी आँखों में नयी
रोशनी ला दूंगा
भले ही मैंने , गिद्धों की दुनिया में
बस अन्धेरा ही पाया
बोलो ना माँ ,क्या मै झूंठा हूँ
तुम बोलोगी ही क्या माँ
तुम तो हमेशा ही आँख मूंदकर
मुझपर विश्वास कर लेती हो
माँ मुझे लगता है
कहीं कोई भगवान नहीं है
सभी बस गिद्ध हैं
ये मौक़ा पाते ही नोच लेते हैं
किसी की , छोटी सी
उम्मीदों से भरी दुनिया
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