सभी के तीरों का स्वागत है
रुकी रुकी सी लगती हैं
ओस सी कुछ निर्मल बूँदें
थमे थमे से लगते हैं
जग के अंधियारे नभ सारे
तुम ही तो थी प्रेयसी
तुम ही थे चिर मित्र हमारे
पर हुई कैसे ये भावना झूठी
तुम न मिले न मिले किनारे
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