गालियों का ज़माना है
माँ की गाली, बहन की गाली
जिसकी नहीं उसकी भी गाली
झुग्गियों में छितराए बच्चे
जब देते हैं गाली
आश्चर्य नहीं होता
दुःख भी नहीं होता
बस उजाले पीठ दिखाने लगते हैं
और अँधेरे मुस्कुराने लगते हैं
भाई, क्या कर सकते हैं
आखिर गालियों का ज़माना है
भद्र जनों के सुपुत्र
जब देते हैं गाली
उनको क्या कहें ,बिना गाली के
उनका पुत्र "स्मार्ट" नहीं होता
वाह रे सभ्यताओं का देश
एक तरफ रक्षा-बंधन का त्यौहार है
दूसरी ओर बहन की गाली उपहार है
आज कलयुग अपने यौवन पर है
और कह रहा है
सभ्यता का गला दबाकर
गालियों की बौछार करो
गाली देकर लड़ो
और गाली देकर ही प्यार करो
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