तीरों की संख्या

मंगलवार, जनवरी 04, 2011

आत्महत्या शान्ति नहीं

कर लिया है आज वरण

मृत्युलोक से ओझल चरण

प्राप्त क्या होगी तुझे शान्ति

यह तेरे मन की है भ्रान्ति

ना हो पाया तू मर्यादित

कुछ भी न कर पाया निर्धारित

नहीं ह्रदय जन का आकर्षित

तेरे ठहरे विचार कुत्षित

स्व जीवन का तू मारा

नहीं सम्पूर्ण था दुःख सारा

यदि संघर्षरत रहता बेचारा

तू भी होता जग का प्यारा

मृत्युलोक से हुआ तू विगलित

अन्य लोक में भी तू पीड़ित

यहीं धरा पर स्वर्णिम पल हैं

कहीं नहीं है कोई कान्ति

प्राप्त क्या होगी तुझे शान्ति

यह तेरे मन की है भ्रान्ति

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर ब्लॉग!
    जीवन संभावनाओं का नाम है...
    निश्चित ही आत्महंता होना निंदनीय है!

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  2. अति सुन्दर, रचनाएँ ! धनुर्धर का निशाना पक्का होना जरुरी है और लक्ष्य भी सदा आँखों के सामने हो !

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  3. अनुपमा जी और सिद्धार्थ जी को मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
    आपका आशीर्वाद सदा यूँ ही मिलता रहे

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