तीरों की संख्या

मंगलवार, जनवरी 04, 2011

धमाकों के बाद

वहाँ हुए थे धमाके

धमाकों के बाद

मरी हुई चीखें निकलती हैं

और ज़िंदा मौत

रास्तों पर इधर-उधर

बिखरी पड़ी होती है

पूरी दुनिया दहल जाती है

झूठी है यह पंक्ति

दहलते हैं तो बस

बुढापे का सहारा खो चुकी

दो बुझती ऑंखें

बिधवा हुई पत्नी

लावारिस हो चुके बच्चे

या अपाहिज आत्माएं

कोई कुछ नहीं कर पाता

सिवाय बहस के

कोई कुछ भी नहीं पाता

वे भी नहीं

जो यह करते हैं

वे भी खो चुके होते हैं

इंसान कहलाने का गर्व 

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